लेखनी प्रतियोगिता -27-Mar-2024
अब तक तो मैंने यह जाना
प्रेम प्रकृति का एक उपहार है
नित्य सदा खिलने वाला
पावन पुनीत संसार है
एक दुजे कि आत्मा का
स्वच्छ सुंदर सु विचार है
दो भटके राही का
मिलन बिंदु उपहार है
अब तक,,,,,,,,,,,,,
जबसे डुबा तो देखा
तपता धरती, बंजारा संसार है
आंखों कि पानी टपकती
दर्द का चीख पुकार है
रोता दिल
तड़पता यार है
छु कर रह जातें दिल
लब्ज़ लिए उधार है
सायरो कि महफिल से
सायरी से प्यार है
अब तक,,,,,,,,,,,,,
धन्य धन्य हैं यह मानव तन
धन्य यह प्यार है
जिसे मिला
उसका प्रकृति खिला
जिसे न मिला
वह आग सा जला है
कुछ कुरीतियों में फंसा
कुछ प्राण दिया छोड़ा घर बार है
सुना सुना उस व्यक्ति का
जीवन धार रहा है
अब तक,,,,,,,,,,,,,
इस पथ पर आकर
भटका राही भरमार है
नव थल जल आकाश तक पहुंचने वाला
निकाल न पाया कोई समाधान है
काले गोरे जात पात में
भटक रहा यह इंसान हैं
तो भला कहों कैसा
रोज रोज का अनुसंधान है
ऐसे विज्ञान से तो अच्छा
अनपढ़ कबीर का ज्ञान हैं
जो समझ लिया ढ़ाई अक्षर
वह विद्वान हैं
जो न समझा
वह अज्ञानी है
ऋषि मुनियों का अपना देश
बहुत बहुत महान है
अब तक,,,,,,,,,,,,,
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar
Varsha_Upadhyay
29-Mar-2024 11:51 PM
Nice
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Punam verma
28-Mar-2024 08:23 AM
Very nice👍
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Abhinav ji
28-Mar-2024 07:57 AM
Very nice👍
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